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रेगुलेटर्स – नियामक | शेयर बाज़ार क्या है?

 

रेगुलेटर्सनियामक

शेयर बाज़ार क्या है?  

हमने पहले अध्याय में पढ़ा था कि इक्विटी निवेश का एक ऐसा विकल्प है जिसमें महंगाई दर से कहीं ज्यादा रिटर्न देने की क्षमता है। अब सवाल ये आता है कि इसमें निवेश करे कैसे? इसका जवाब जानने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि इक्विटी में निवेश कौन कौन से लोग करते हैं और ये पूरा सिस्टम कैसे काम करता है। 

जैसे हम अपने बगल के किराना दुकान जा कर ज़रूरत की चीजें खरीदते हैं, वैसे ही हम इक्विटी में निवेश, या खरीद बिक्री  स्टॉक मार्केट या शेयर बाज़ार में करते हैं। इक्विटी में निवेश करते वक्त एक शब्दट्रांजैक्ट (Transact) आप बार बार सुनेंगे। ट्रांजैक्ट का मतलब है खरीद-बिक्री करना। और इक्विटी की ये खरीद-बिक्री आप बिना स्टॉक मार्केट के नहीं कर सकते। 

स्टॉक मार्केट इक्विटी खरीदने वाले और बेचने वाले को मिलाता है। लेकिन ये स्टॉक मार्केट किसी दुकान या इमारत के रूप में नहीं दिखता, जैसा कि आपके किराने के दुकान दिखते हैं। स्टॉक मार्केट इलेक्ट्रॉनिक रूप में होता है। आप कंप्यूटर के ज़रिए इस पर जाते हैं और वहाँ खरीद बिक्री का काम करते हैं। एक बात का यहाँ ध्यान रखें कि ये शेयरों की खरीद बिक्री का काम आप बिना स्टॉक ब्रोकर के नहीं कर सकते। स्टॉक ब्रोकर एक रजिस्टर्ड मध्यस्थ होता है, जिसके बारे में हम आगे विस्तार से बताएंगे। 

भारत देश में दो मुख्य स्टॉक एक्सचेंज हैं- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ( Bombay Stock Exchange- BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (National Stock Exchange- NSE) इसके अलावा कुछ क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंज भी हैं जैसे बैंगलोर स्टॉक एक्सचेंजमद्रास स्टॉक एक्सचेंज। क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंज पर अब ना के बराबर लोग हिस्सा लेते हैं। 

2.2 शेयर बाज़ार में कौन लोग हिस्सा लेते हैं और उन्हें रेगुलेट करने की ज़रूरत क्यों है

शेयर बाज़ार में एक व्यक्ति से लेकर कंपनियाँ तक निवेश करती हैं। जो लोग भी शेयर बाज़ार में खरीद बिक्री करते हैं उन्हे मार्केट पार्टिसिपेंट्स (Market Participants) कहा जाता है। इन मार्केट पार्टिसिपेंट्स को कई कैटेगरी या वर्ग में बाँटा गया है। कुछ कैटेगरी की जानकारी नीचे दी गई है। 

1.    डोमेस्टिक रिटेल पार्टिसिपेंट्स भारतीय मूल के नागरिक जो भारत में ही रहते हैं, जैसे हम और आप। 

2.    NRI’s और OCI भारतीय मूल के नागरिक जो विदेशों में बसे हैं। 

3.    घरेलू संस्थागत निवेशक (Domestic Institutions) –  इसके तहत बड़ी भारतीय कंपनियाँ आती हैं, जैसे भारतीय जीवन बीमा निगम ( Life Insurance Company of India- LIC)

4.    घरेलू ऐसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ ( Asset Management Companies) इस वर्ग में आमतौर पर घरेलू म्युचुअल फंड कंपनियाँ होती हैं जैसे SBI म्युचुअल फंड, DSP ब्लैक रॉक, फिडेलटी इंवेस्टमेंट्स, HDFC AMC वगैरह। 

5.    विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional Investors) – इसमें विदेशी कंपनियाँ, विदेशी ऐसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ, हेज फंड्स वगैरह आते हैं। 

निवेशक किसी भी कैटेगरी या वर्ग का हो, शेयर बाज़ार में भाग लेने वाली हर एंटिटी मुनाफा कमाना चाहती है। और जब पैसे की बात आती है, तो इंसान के अंदर लालच और डर दोनों बहुत ज्यादा होता है। कोई भी इंसान बड़े आराम से लालच और डर के चक्कर में पड़ कर गलत काम कर सकता है। भारत में इस तरह के घोटाले भी हुए हैं, जैसे हर्षद मेहता घोटाला वगैरह। इसलिए ज़रूरी है कि एक ऐसी बॉडी हो, जो नियम कानून बनाए और ये सुनिश्चित करे कि किसी तरह की गलत हरकतें बाज़ार में हो, और सभी को पैसा कमाने का सही मौका मिले। इसीलिए रेगुलेटर की ज़रूरत होती है।

2.3 रेगुलेटर 

भारत में शेयर बाज़ार का रेगुलेटर है भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ( The Securities and Exchange Board of India- SEBI) जिसे हम सेबी के नाम से जानते हैं। सेबी का उद्देश्य है प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज़) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करनाप्रतिभूति बाजार (सिक्योरिटीज़ मार्केट) के विकास का उन्नयन करना तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना  सेबी ये सुनिश्चित करती है कि

1.    दोनों स्टॉक एक्सचेंज – NSE और BSE, अपना काम सही तरीके से करें

2.    स्टॉक ब्रोकर्स और सब ब्रोकर्स नियमानुसार काम करें 

3.    शेयर बाज़ार में हिस्सा लेने वाली कोई एंटिटी गलत काम करे

4.    कंपनियाँ शेयर बाज़ार का इस्तेमाल सिर्फ खुद के फायदे के लिए करेंजैसा सत्यम कम्प्यूटर्स ने किया था

5.    छोटे निवेशकों के हित की रक्षा हो

6.    बड़े निवेशक, जिनके पास बहुत पूंजी है, वो अपने हिसाब से बाजार में हेर-फेर करें 

7.    पूरे शेयर बाज़ार का विकास हो

 

इन उद्देश्यों को देखते हुए ये ज़रूरी है कि सेबी सभी एंटिटी को रेगुलेट करे। नीचे दिए गए सभी एंटिटी शेयर बाजर से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। किसी एक की गलत हरकत से शेयर बाज़ार में उठा पटक मच सकती है। 

सेबी ने इन एंटिटी के लिए अलग अलग नियम और कानून बनाए है। सभी को इन नियम कानून के दायरे में रह कर काम करना होता है। इन नियम कानून की विस्तार में जानकारी सेबी के वेबसाइट परकानूनी ढाँचासेक्शन में आपको मिल जाएगी। 

एंटिटी

कंपनियों के उदाहरण

क्या करती हैं ये कंपनियाँ

आसान शब्दों में समझिए

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (Credit Rating Agency- CRA)

CRISIL, ICRA, CARE

कॉरपोरेट्स और सरकार के उधार लेने की योग्यता को रेट करती है

अगर सरकार या कोई कंपनी लोन लेना चाहती है, तो ये कंपनियाँ चेक करती हैं कि सरकार या कंपनी के पास लोन चुकाने की क्षमता है या नहीं।

डिबेंचर ट्रस्टीज ( Debenture Trustees)

तकरीबन सारे बैंक

कॉरपोरेट डिबेंचर के ट्रस्टी की तरह काम करते हैं

जब किसी कंपनी को पैसे की ज़रूरत होती है तो वो डिबेंचर इश्यू कर सकती हैं, जिस पर वो तय ब्याज देने की बात करते हैं। निवेशक ये डिबेंचर खरीद सकते हैं। डिबेंचर ट्रस्टी ये सुनिश्चित करता है कि कंपनी ने जो ब्याज देने की बात की थी, वो वक्त पर दे।

डेपोसिटोरीज़ ( Depositories)

NSDL, CDSL

डेपोसिटोरीज़ निवेशकों की सेक्यूरिटीज़ को सुरक्षित रखती हैं और इसकी रिपोर्टिंग और सेटलमेंट करती हैं

जब आप शेयर खरीदते हैं, तो वो आपके डिपॉजिटरी अकाउंट में जाते हैं, जिसे डीमैट अकाउंट भी कहते है। इन डीमैट अकाउंट को मैनेज करने का काम ये दो कंपनियाँ करती हैं।

विदेशी संस्थागत निवेशक ( Foreign Institutional Investors- FII)

विदेशी कंपनियाँ, फंड्स और विदेशी नागरिक

भारत में निवेश करना

ये विदेशी एंटिटी होते हैं, जो भारत मे निवेश करना चाहते हैं। ये निवेश के लिए काफी बड़ी रकम लगाते हैं और इनके निवेश का असर भारतीय शेयर बाज़ार की चाल पर साफ-साफ दिखता है।

मर्चेंट बैंकर्स

कार्वी, एक्सिस बैंक, एडलवाइज कैपिटल

कंपनियों की मदद करना प्राइमरी मार्केट से पैसा जुटाने में

अगर कंपनी आईपीओ IPO के ज़रिए पैसा जुटाना चाहती है, तो मर्चेंट बैंकर इस पूरी प्रक्रिया में कंपनियों की मदद करते हैं।

ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी- Asset Management companies -AMC

HDFC AMC, रिलायंस कैपिटल, SBI कैपिटल

म्युचुअल फंड स्कीम्स बेचती हैं

AMC लोगों से पैसे लेता है, उसे एक अकाउंट में डालता है, और उस पैसे को शेयर बाज़ार में निवेश करता है। उद्देश्य ये होता है कि ज्यादा से ज्यादा मुनाफा बना कर निवेशकों को फायदा पहुंचाया जाए।

पोर्टफोलियो मैनेजर्स, पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सिस्टम (Portfolio management system- PMS)

रेलिगेयर वेल्थ मैनेजमेंट, पराग पारिख PMS

PMS स्कीम्स बेचती हैं

ये है तो म्युचअल फंड की तरह लेकिन यहाँ आपको कम से कम 25 लाख रुपये का निवेश करना होता है। म्युचुअल फंड में ऐसी कोई शर्त नहीं होती।

स्टॉक ब्रोकर्स और सब ब्रोकर्स

Zerodha, शेयरखान, ICICI डायरेक्ट

निवेशक और स्टॉक एक्सचेंज के बीच मध्यस्थ का काम

आप शेयर की खरीद-बिक्री रजिस्टर्ड ब्रोकर के ज़रिए ही कर सकते हैं। सब-ब्रोकर, ब्रोकर के लिए एजेंट की तरह काम करता है।

 


इस अध्याय की ज़रूरी बातें

1.    अगर आपको शेयर खरीदना-बेचना है तो शेयर बाज़ार या स्टॉक मार्केट के ज़रिए करना होगा।

2.    शेयर बाजार में शेयर खरीदना-बेचना इलेक्ट्रॉनिक तरीके से होता है और आप किसी स्टॉक ब्रोकर के ज़रिए ये काम कर सकते हैं।

3.    शेयर बाज़ार में कई भागीदार/खिलाड़ी या पार्टिसिपेंट्स (participants) होते हैं।

4.    शेयर बाज़ार में भाग लेने या ऑपरेट करने वाले सभी एंटिटी को रेगुलेट करना ज़रूरी है और सबको रेगुलेटर द्वारा बनाए गए नियमों को पालन करना होता है।

5.    SEBI – सेबी सिक्योरिटी बाज़ार का रेगुलेरटर है। वो नियम- कानून बना कर शेयर बाज़ार में हिस्सा लेने वाले सभी एंटिटी को रेगुलेट करता है।

6.    सबसे ज़रूरी बात- सेबी को पता होता है कि आप शेयर बाज़ार में क्या कर रहे हैं, अगर आपने कुछ भी गैर-कानूनी किया तो आपके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा। 

फाइनेंशियल इन्टरमीडियरीज

संक्षिप्त विवरण

शेयर बाजार में आपके एक शेयर खरीदने से ले कर उस शेयर के आपके डीमैट एकाउंट में आने तक कई तरह की कॉरपोरेट एंटिटीज (Corporate Entities) यानी कई संस्थाएं बैकएंड में काम कर रही होती हैं, जिससे ये काम सही तरीके से हो जाए। पर्दे के पीछे काम कर रहीं ये एंटिटीज सेबी के कायदे कानूनों के मुताबिक आपके सौदे को मुमकिन बनाती हैं जिससे आपको कोई दिक्कत हो। इन एंटिटीज को फाइनेंशियल इन्टरमीडियरीज (Financial Intermediaries) के नाम से जाना जाता है। 

ये इन्टरमीडियरीज एक दूसरे के काम पर निर्भर होती हैं और एक साथ मिल कर वो इकोसिस्टम तैयार करती हैं जिसके बिना वित्तीय बाजार का चलना असंभव है। इस अध्याय में आपको इन इन्टरमीडियरीज के बारे में बताया जाएगा।

3.2 शेयर दलाल/स्टॉक ब्रोकर (The Stock Broker)

ब्रोकर या दलाल शायद शेयर बाजार का सबसे महत्वपूर्ण इन्टरमीडियरी है, इसके बारे में जाने बगैर आपका काम नहीं चलेगा। ये एक कॉपोरेट एंटिटी  (Corporate Entity) है जो शेयर एक्सचेंज में ट्रेडिंग मेंबर के तौर पर रजिस्टर्ड होते हैं और इनके पास स्टॉक ब्रोकिंग का लाइसेंस होता है। और ये सेबी के नियमों के तहत काम करते हैं।

एक तरह से स्टॉक ब्रोकर आपके लिए शेयर बाजार का दरवाजा है। शेयर बाजार में आने के लिए आपको किसी ब्रोकर के पास ट्रेडिंग एकाउंट खोलना जरूरी होता है। आप ब्रोकर अपनी मर्जी से या अपनी पसंद का चुन सकते हैं। 

आपका ट्रेडिंग एकाउंट आपके ब्रोकर के पास होता है जिसके जरिए आप शेयर खरीद या बेच सकते हैं। 

तो मान लीजिए कि आपने ट्रेडिंग एकाउंट खोल लिया है और आप कोई सौदा करना चाहते हैं जिसके लिए आपको अपने ब्रोकर से संपर्क करना है तो इसके क्या तरीके हैं?

1.       आप खुद ब्रोकर के ऑफिस में जाएं और वहां बैठे डीलर से मिल कर उसे बताएं कि आपको क्या सौदा करना है। डीलर वहां इस तरह के ऑर्डर को पूरा करने के लिए ही बैठता है। 

2.       आप अपने ब्रोकर को फोन कर सकते हैं, अपनी पहचान, क्लायंट कोड जैसी जानकरी देने के बाद अपना ऑर्डर बता सकते हैं। इसके बाद डीलर आपके सौदे को पूरा करेगा। फिर आपको फोन पर ही बता देगा कि आपका ऑर्डर पूरा हो गया। 

3.       आप खुद भी सौदा कर सकते हैं। एक ट्रेडिंग टर्मिनल साफ्टवेयर के जरिए। आपको अपने कम्प्यूटर पर सिर्फ लॉग इन करना होगा और आप खुद शेयर की लाइव (LIVE) यानी उस वक्त की कीमत देख सकेंगे और ऑर्डर कर सकेंगे। इसीलिए ये सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला तरीका है

 

        

1.       बाजार में शेयर खरीदने बेचने की सुविधा

2.       ट्रेडिंग के लिए मार्जिन। इसकी हम बाद में विस्तार से चर्चा करेंगे

3.       अगर फोन पर ट्रेडिंग करनी है तो वहाँ ब्रोकर आपको मदद करेगा। साथ ही सॉफ्टवेयर का सपोर्ट भी जिससे आपके ट्रेडिंग में दिक्कत ना आए

4.       हर सौदे का कॉन्ट्रैक्ट नोट जारी करना। ये नोट उस दिन के सौदे का लिखित प्रमाण होता है

5.       आपके बैंक एकाउंट और ट्रेडिंग एकाउंट के बीच पैसा ट्रांसफर करना

6.       बैक ऑफिस का लॉग इन बनाना, जिससे आप अपने एकाउंट की पूरी जानकारी देख सकें

7.       अपनी तरफ से दी गयी इन सुविधाओं के लिए ब्रोकर आपसे एक फीस लेता है जिसे ब्रोकरेज चार्ज कहते हैं। हर ब्रोकर के यहां ये फीस अलग अलग होती है। आपको वो ब्रोकर चुनना होता है जहाँ फीस और सुविधाओं का सही संतुलन हो

 3 .3 डिपॉजिटरी और डिपॉजिटरी पॉर्टिसिपेंट (Depository and Depository Participants)



जब आप कोई प्रॉपर्टी खरीदते हैं तो उसके कागज संभाल कर रखते हैं जिसे समय आने पर आप दिखा सकें कि आपने कब और कहाँ से उसे खरीदा था। इसलिए कागज को सुरक्षित जगह पर रखना महत्वपूर्ण होता है।

इसी तरह जब आप शेयर खरीदते हैं (जो कि वास्तव में उस कंपनी में आपकी हिस्सेदारी है) तो आपको अपनी हिस्सेदारी साबित करने के लिए शेयर सर्टिफिकेट को संभाल कर रखना होता है। क्योंकि उसी में सारी जानकरी लिखी होती है कि आपके पास कंपनी का कितना हिस्सा है।

1996 तक शेयर सर्टिफिकेट कागज का होता था। लेकिन उसके बाद से शेयर सर्टिफिकेट डिजिटल तरीके से जारी होने लगा। कागज के शेयरों को डिजिटल में बदलने की प्रक्रिया को डीमैटेरियलाइजेशन (Dematerialization) कहा जाता है जिसे छोटे में डीमैट (DEMAT) कहा जाने लगा।

1996 के बाद इन डीमैट शेयरों को डिजिटली रखने की जरूरत आ पड़ी और तब से एक डीमैट एकाउंट जरूरी हो गया। डीमैट एकाउंट की सुविधा देने के लिए डिपॉजिटरी को बनाया गया। डिपॉजिटरी आपके डीमैट एकाउंट आपके सभी शेयरों को डिजिटल फॉर्म में रखने का काम करती है। इसे आप अपनी डिजिटल तिजोरी भी मान सकते हैं।

आपके ब्रोकर के पास खोला गया ट्रेडिंग एकाउंट और डिपॉजिटरी के पास खुला डीमैट एकाउंट आपस में जुड़े होते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आप इन्फोसिस का शेयर खरीदना चाहते हैं तो आप अपने ट्रेडिंग एकाउंट पर लॉग इन करेंगे, अपनी कीमत डालेंगे और खरीदने का ऑर्डर डालेंगे और शेयर खरीद लेंगे। यहाँ आ कर ट्रेडिंग एकाउंट का काम खत्म। इसके बाद इन्फोसिस का शेयर अपने आप आपके डीमैट एकाउंट में आ जाएगा।

इसी तरह बेचते समय आपको शेयर की कीमत और ऑर्डर ट्रेडिंग एकाउंट पर डालना होगा और शेयर आपके डीमैट एकाउंट से अपने आप निकल जाएंगे।

अभी देश में डीमैट एकाउंट की सर्विस देने वाली सिर्फ दो डिपॉजिटरी हैं। एन एस डी एल (NSDL) यानी नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (The National Securities Depository Limited) और सी डी एस एल (CDSL) यानी सेन्ट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड (Central Depository Services- India- Limited)। दोनों मे एक जैसी सर्विस मिलती है और दोनों सेबी के नियमों के तहत काम करती हैं।

जैसे आप शेयर ट्रेडिंग एकाउंट खोलने के लिए ब्रोकर के पास जाते हैं, NSE या BSE नहीं, उसी तरह डीमैट एकाउंट खोलने के लिए आप NSDL या CDSL के पास नहीं किसी डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट (Depository Participant- DP) के पास जाएंगे। ये DP आपका एकाउंट खोलने के लिए डिपॉजिटरी के एजेंट की तरह काम करते हैं और सेबी के नियमों के अधीन होते हैं।

 3.4 बैंक (Banks)



शेयर बाजार के मामले में बैंक की भूमिका काफी सीधी होती है। ये बैंक से ट्रेडिंग एकाउंट और ट्रेडिंग एकाउंट से बैंक के बीच पैसों का ट्रांसफर करते हैं। इसके लिए ट्रेडिंग एकाउंट और बैंक एकाउंट में एक ही नाम होना जरूरी है।

आप अपने कई बैंक एकाउंट अपने ट्रेडिंग एकाउंट से जोड़ सकते हैं। जैसे जेरोधा (Zerodha) पर एक प्राइमरी बैंक एकाउंट और तीन सेकेंडरी बैंक एकाउंट आपके ट्रेडिंग एकाउंट से जोड़ने की सुविधा है। आप शेयर खरीदने के लिए पैसे इनमें से किसी भी बैंक एकाउंट से डाल सकते हैं। लेकिन बेचते समय पैसे सिर्फ प्राइमरी बैंक एकाउंट में ही जाएंगे। आपका प्राइमरी बैंक एकाउंट आपके ट्रेडिंग एकाउंट, डिपॉजिटरी और रजिस्ट्रार एंड ट्रांसफर एजेंट (Registrar and transfer agents- RTA) से भी जुड़ा होता है।

तो ट्रेडिंग, बैंक और डिपॉजिटरी एकाउंट आपस में इलेक्ट्रानिक तरीके से जुड़े होते हैं जिससे आप आसानी से सौदे कर सकें।
3.5 एन एस सी सी एल (NSCCL) और आई सी सी एल (ICCL)

नेशनल सेक्योरिटीज क्लियरिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (National Security Clearing Corporation Limited- NSCCL) नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE)की और इंडियन क्लियरिंग कारपोरेशन लिमिटेड BSE यानी बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज की सब्सिडियरी हैं। इनका काम है एक्सचेंज पर होने वाले हर सौदे का सेटेलमेंट करना। अगर आपने बॉयोकॉन का एक शेयर 446 के भाव पर खरीदा है तो किसी ने आपको ये शेयर 446 रूपए में बेचा होगा। क्लियरिंग कॉरपोरेशन का काम ये सुनिश्चित करना है कि शेयर बेचने वाले के डीमैट एकाउंट से निकल कर खरीदने वाले के डीमैट एकाउंट में पहुंच जाए। और पैसे खरीदने वाले के बैंक से निकल कर बेचने वाले के बैंक एकाउंट में। तो कुल मिलाकर क्लियरिंग कॉरपोरेशन किसी भी सौदे में ये काम करता है:

1. खरीदार और बेचने वाले की पहचान करना और उनके एकाउंट में पैसे और शेयर का हिसाब किताब जोड़ना।

2. ये पक्का करना कि सौदा पूरा हो और कोई भी पार्टी सौदे से पीछे ना हट जाए।

वैसे किसी भी निवेशक के लिए क्लियरिंग कॉरपोरेशन के बारे में बहुत विस्तार से जानना जरूरी नहीं है। उसे कभी सीधे इनसे काम नहीं पड़ने वाला। उसे सिर्फ इतना पता होना चाहिए कि एक प्रोफेशनल संस्था पूरे नियम कानूनों के साथ ये काम कर रही है।

इस अध्याय की ज़रूरी बातें:

1. बाजार में कई इन्टरमीडियरी अलग अलग काम करते हैं जिसके मिलने से वो पूरा तंत्र बनता है जिससे बाजार में आसानी से कामकाज हो सके।

2. शेयर बाजार में आपके घुसने का रास्ता ब्रोकर से हो कर जाता है। इसलिए जरूरी है कि आप अपनी जरूरत और सुविधा को ध्यान में रख कर सही ब्रोकर चुनें।

3. ब्रोकर आपको ट्रेडिंग एकाउंट की सुविधा देता है जिसके जरिए आप शेयर खरीद या बेच सकते हैं।

4. डिपॉजिटरी एक ऐसी संस्था है जो आपके शेयर डिजिटल फार्म में रखती है और इसके लिए आपका डीमैट एकाउंट बनाती है।

5. देश में दो डिपॉजिटरी है एन एस डी एल (NSDL) और सी डी एस एल (CDSL)

6. डीमैट एकाउंट खोलने के लिए आपको डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट से संपर्क करना होगा। वो डिपॉजिटरी के एजेंट के तौर पर काम करते हैं।

7. क्लियरिंग कॉरपोरेशन आपके सौदे को क्लियर करने और सेटल करने का काम करता है।

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